Reservation in Bihar /बिहार आरक्षण कानून

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बिहार विधानसभा में बिहार आरक्षण कानून पारित किया गया, जिससे राज्य में नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मात्रा बढ़कर 75% हो गई, जो सर्वोच न्यायालय  (SC) द्वारा बरकरार रखे गए 50% नियम का उल्लंघन है।

बिहार आरक्षण कानून की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • ये कानून हैं बिहार पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिये) संशोधन अधिनियम 2023 तथा बिहार (शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण अधिनियम, 2023।
  • संशोधित अधिनियम के तहत, दोनों मामलों में कुल 65% आरक्षण होगा, जिसमें अनुसूचित जाति के लिये 20%, अनुसूचित जनजाति  के लिये 2%, पिछड़ा वर्ग के लिये 18% और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिये 25% आरक्षण होगा।
  • इसके अलावा केंद्रीय कानून के तहत पहले से मंज़ूरी प्राप्त EWS (आर्थिक रूप से कमज़ोर सामान्य वर्ग के लोगों) को 10% आरक्षण मिलता रहेगा।
  • इसने भारत में आरक्षण की अनुमेय सीमा के बारे में बहस छेड़ दी है, विशेष रूप से मंडल आयोग मामले (इंद्रा साहनी, 1992) में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित “50%” सीमा के मद्देनज़र।

नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 75 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की है, जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण भी शामिल है। यह विकास, कुछ हद तक, बिहार सरकार द्वारा जाति सर्वेक्षण के नतीजे जारी करने के बाद अपेक्षित था। सर्वेक्षण में रेखांकित किया गया कि बिहार की लगभग 85 प्रतिशत आबादी सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिये पर रहने वाले वर्गों से है।

बिहार सरकार द्वारा आरक्षण में वृद्धि ने सुप्रीम कोर्ट (एससी) द्वारा निर्धारित आरक्षण पर ’50 प्रतिशत की सीमा’ के आसपास की बातचीत को फिर से शुरू कर दिया है। 1963 में, एमआर बालाजी और अन्य बनाम मैसूर राज्य के मामले में, सुप्रीम कोर्ट पहली बार आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा लेकर आया।

  • सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 15(4) के तहत शुरू किए गए आरक्षण को तर्कसंगतता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। इसने आगे कहा कि हालांकि आरक्षण के सटीक अनुमेय प्रतिशत का अनुमान लगाना संभव नहीं है, लेकिन सामान्य और व्यापक तरीके से यह कहा जा सकता है कि वे 50 प्रतिशत से कम होना चाहिए।
    • सर्वोच्च न्यायालय की 103वें संवैधानिक संशोधन की हालिया पुष्टि आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिये अतिरिक्त 10% आरक्षण को मान्य करती है।
      • इसका मतलब है कि 50% की सीमा केवल गैर-EWS आरक्षण पर लागू होती है और राज्यों को EWS आरक्षण सहित कुल 60% सीटें/पद आरक्षित करने की अनुमति है।

हाल ही में बिहार विधानसभा में बिहार आरक्षण कानून पारित किया गया, जिससे राज्य में नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मात्रा बढ़कर 75% हो गई, जो सर्वोच न्यायालय  (SC) द्वारा बरकरार रखे गए 50% नियम का उल्लंघन है।

  • प्रारंभ में वर्ष 1963 के एम.आर. बालाजी मामले में सात-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा स्थापित, आरक्षण को संवैधानिक ढाँचे के तहत एक “अपवाद” या “विशेष प्रावधान” माना जाता था, जिससे उपलब्ध सीटों की अधिकतम 50% तक सीमित थी।
  • इसने भारत में आरक्षण की अनुमेय सीमा के बारे में बहस छेड़ दी है, विशेष रूप से मंडल आयोग मामले (इंद्रा साहनी, 1992) में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित “50%” सीमा के मद्देनज़र।

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